विजय ही विजय है

बुधवार, 19 दिसंबर 2007

मौत के सौदागर- मैंने ऐसा तो नहीं कहा था

लेखक- डॉ. सूर्य प्रकाश अग्रवाल

गुजरात में विधानसभा के चुनावों की सुगबुगाहट शुरु होते ही गुजरात में सोहराबुददीन की पुलिस मुठभेड में मौत को लेकर जिस प्रकार कांग्रेस ने संसद में भाजपा सहित गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी की छिछालेदर कर के राजनीतिक लाभ प्राप्त करने की असफल कोशिश की थी वैसा भारतीय राजनीतिक इतिहास में दूसरा कोई उदाहरण नहीं मिलता। इसमें कुछ मीडिया चैनलों ने सुबह से सायं तक इस प्रलाप में कांग्रेस का साथ दिया। चुनाव के प्रचार में कांग्रेस का सदैव यही प्रयास रहा कि गुजरात में किस प्रकार अल्पसंख्यकों के वोटों पर कब्जा किया जाय। इसके लिए कांग्रेस ने नरेन्द्र मोदी को सोहराबुददीन की मुठभेड में हुई मौत के लिए दोषी ठहराते हुए उनको मौत का सौदागर ही कह कर अल्पसंख्यकों में बहुसंख्यकों के प्रति द्वेष फैला व असुरक्षा का वातावरण पैदा कर दूसरी बार राजनीतिक लाभ प्राप्त करने की कोशिश की। जब वोटों के इस खेल में कांग्रेस असफल रही तो फौरन अपने बयान से मुकर कर ऐसा कहा गया कि मैने ऐसा तो नहीं कहा । कांग्रेस की अध्यक्षा श्रीमती सोनिया गांधी ने अपने भाषण में गुजरात के शासकों को मौत का सौदागर करार दिया था। कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने कहा कि श्रीमती सोनिया गांधी का आशय मोदी नहीं थे। कपिल सिब्बल की इस विचारधारा से स्वयं उनके लिए ही खतरा उत्पन्न हो गया। कांग्रेस का मानना है कि कपिल सिब्बल जो भी मुंह में आता है, बोल देते हैं जिससे उन्हें अब पार्टी के कामकाज से दूर रखने का ही फैसला हो गया है और हो सकता है कि गुजरात में कांग्रेस की पराजय का ठीकरा कपिल सिब्बल के ही सिर पर फोड दिया जाय और परिणामस्वरुप उन्हें केन्द्रीय मंत्री पद ही छोडना पडे।

यह सर्वविदित है कि आतंकवाद फैलाने में कांग्रेस की मुस्लिम तुष्टीकरण की नीतियां ही दोषी रही हैं । आतंकवादी हजारों की संख्या में निर्दोष लोगों की हत्या कर रहे हैं, उन्हें तो मौत के सौदागर नहीं कहा गया, उनके साथ तो नरम रुख अख्तियार करते हुए उन्हें फांसी के फंदे से बचाये जाने की हर सम्भव कोशिश की जा रही है। देश के गृहमंत्री शिवराज पाटिल ने आतंकवादियों के सम्मुख हताश होकर बयान दिया कि आतंकवादी देश के किसी भी कोने में कभी भी आतंकवादी कार्रवाई कर सकते है और सरकार कोई प्रभावपूर्ण कार्रवाई करने में असमर्थ है। सरकार निरीह प्राणी की तरह कुछ भी नहीं कर सकती है। उनके बयान से पुलिस सहित सेना का मनोबल भी गिरा है। देश के प्रत्येक राज्य की पुलिस व देश की सेना में अब भी दमखम है कि यदि राजनेता मुस्लिम तुष्टीकरण की अपनी राजनीति छोड कर सुरक्षाबलों के बंधे हाथ खोल दें तो महीने भर में नहीं अपितु ज्यादा से ज्याद एक सप्ताह में ही देश के प्रत्येंक कोने में फैले आतंकवादी चूहे की तरह बिल में घुसते हुए नजर आएंगे । अलगाववाद सदा-सदा के लिए नेस्तनाबूद हो जायेगा। नरेन्द्र मोदी ने अपने दोनों कार्यकाल किस प्रकार गुजारे है? यह गुजारात की जनता उन्हें इन चुनावों में बता देगी।

'मौत के सौदागर' पर राजनेता बयानबाजी कर रहे है। उन्हें गुजरात के विकास व औद्योगिक उन्नति से कुछ लेना देना नहीं। 'मौत के सौदागर' तो कोई भी हो सकता है । भारत में जनता कभी भी ऐसे नेता का समर्थन नहीं करती है जो मौत का सौदागर हो। मौत के सौदागर शब्द का प्रयोग उन आतंकवादियों के लिए किया जाना चाहिए जो बम से देखते ही देखते हंसते-खिलखिलाते निर्दोष लोगों को चिथडे करके हवा में उडा देते है। मौत के सौदागर वे लोग है जिन्होंने उत्तरप्रदेश की न्याय व्यवस्था को ध्वंस व भंग करते हुए राज्य की अदालतों में बम विस्फोट किये व दर्जनों लोगों को मौत की नींद सुला दिया। मौत के सौदागर वे लोग है जिन्होंने नवयुवकों को बहलाफुसला कर गुमराह करके आतंकवाद की राह पर धकेल दिया। मौत के सौदागर वे लोग है जो हवाई जहाज को कब्जे में लेकर यात्रियों की जिन्दगियों का सौदा अपने आतंकवादी साथियों को जेल से छुडाने के लिए करते है। मौत के सौदागर वे लोग है जो भारत के लोकतंत्र के मंदिर संसद में घुस कर हमला करते है। मौत के सौदागर वे लोग है जो दोषी ठहराये गये आतंकवादी की फांसी की सजा को माफ करने के चक्कर में है। मौत के सौदागर वे लोग है जो देश के लोगों की सुरक्षा की जिम्मेदारी निभाने के प्रति आतंकवादी व आतंकवाद को राजनीतिक उद्देश्यों के लिए रोकने में स्वंय को अक्षम महसूस करते है और कुर्सी भी छोडते हैं।

नरेन्द्र मोदी ने अपनी सफाई दी कि मैंने कभी कोई ऐसी बात अपने भाषण में चुनाव प्रचार के दौरान नहीं कही जो उच्चतम न्यायालय में गुजरात सरकार की तरफ से पेश हलफनामें के विपरीत हो, मैं पहले भी अपनी स्थिति स्पष्ट कर चुका हूं कि मैं फर्जी मुठभेडों का समर्थन नहीं करता हूं। मोदी के भाषण को समग्रता से पढे जाने की आवश्यकता है। वे तो श्रीमती सोनिया गांधी की टिप्पणी का जबाब दे रहे थे। मोदी ने अपने भाषण को पूरी तरह आतंकवाद के खिलाफ बताते हुए कहा कि निश्चित तौर पर निर्वाचन आयोग की यह नीति नहीं होगी कि उनके (श्रीमती सोनिया गांधी ) बयान से हुए आचार संहिता के उल्लंघन को नजरांदाज कर दे और सोनिया गांधी के बयान के जबाब में दिये गये मेरे राजनैतिक जबाब को सेंसर करे। निर्वाचन आयोग के द्वारा दिये गये नोटिस को आयोग द्वारा वापस ले लेने की मांग करते हुए मोदी ने कहा कि मैनें कभी भी और खास कर सोहराबुद्दीन शेख की मुठभेड को तर्कसंगत नहीं ठहराया। भाजपा के नेता अरुण जेटली ने कहा कि आयोग ने सोहराबुद्दीन शेख की फर्जी मुठभेड में कत्ल को कथित तौर पर सही ठहराने वाले जिस भाषण के लिए मोदी को नोटिस भेजा था, उसे संदर्भ से काट कर पेश किया गया था। सोनिया गांधी व नरेन्द्र मोदी के बयानों को मीडिया ने तोड मरोड कर प्रचारित किया। नरेन्द्र मोदी सहित भाजपा का मानना है कि आयोग मोदी के जबाब से संतुष्ट हो जायेगा और तब तेज गति से खबरें देने वाले इन न्यूज चैनलों की क्या गत बनेगी? जिन्होंने सोनिया गांधी की चमचागिरी करते हुए नरेन्द्र मोदी के बयान को गलत ढंग से पेश किया परन्तु खबरों को गलत व गैर जिम्मेदाराना ढंग से पेश करने वालों को इसका कोई अफसोस भी नहीं होगा।

निर्वाचन आयोग ने गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी से कहा था कि 4 दिसम्बर 2007 को मंगरौल में उनका भाषण उसके सामने आया और एक सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड ने शिकायत करते हुए नरेन्द्र मोदी पर आरोप लगाया कि यह हिंसा को खुले आम प्रोत्साहन देने वाला तथा राजनैतिक लाभ के लिए धर्म का दुरुपयोग करने वाला है। आयोग को लगा कि प्रथम दृष्टया भाषण में दिवंगत सोहराबुद्दीन का उल्लेख और उसका नाम आतंकवाद से जोडना, व्याप्त मतभेदों को बढाने, पारस्परिक घृणा उत्पन्न करने और विभिन्न समुदायों के बीच तनाव पैदा करने वाला है तथा इससे चुनाव की आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन होता है। नरेन्द्र मोदी ने इस नोटिस का जबाब दे दिया तथा भाजपा ने निर्वाचन आयोग में शिकायत की कि 1 दिसम्बर 2007 को चुनाव सभा में श्रीमती सोनिया गांधी ने आपत्तिजनक शब्दों का प्रयोग किया था। निर्वाचन आयोग ने कांग्रेस की अध्यक्षा श्रीमती सोनिया गांधी के इस भाषण का ब्यौरा तलब किया है। अब जब लगा कि सोनिया के इस बयान से नरेन्द्र मोदी को लाभ मिल सकता है तो कांग्रेस की तरफ से कहा गया कि सोनिया गांधी ने ऐसाश् तो नहीं कहा। उन्होंने तो शासन की व्यवस्था पर सवाल उठाया था। कांग्रेस को गुजरात के हिन्दुओं की चिन्ता नहीं परन्तु उसको तो इस्लामिक आतंकवाद जिसको जिहाद का नाम देकर व बम फोड कर निर्दोष लोगों की हत्याऐं की जाती है,, उन आतंकवादियों की ज्यादा चिन्ता है जिन्होंने मानवाधिकारों का जबरदस्त उल्लंघन किया है।

गुजरात में नरेन्द्र मोदी ने अपने दो कार्यकालों में गुजरात में किये गये विकास के कार्यों के आधार पर चुनाव लडना तय किया था परन्तु सोहराबुद्दीन मामले को कांग्रेस ने संसद सहित गुजरात में भी उछाल दिया जिससे नरेन्द्र मोदी ने भी अपनी चुनावी रणनीति बदल कर हिन्दू-मुस्लिम के बीच ही नीति तय कर दी जिससे तथाकथित धर्मनिरपेक्षवादी राजनीतिक ताकतें विचलित हो गयी। गुजरात में वर्ष 2002 में गोधराकाण्ड में हिन्दुओं के मारे जाने से उपजी हिंसा में मुस्लिमों के मारे जाने के बाद तथाकथित धर्मनिरपेक्षवादियों के निशाने पर नरेन्द्र मादी है। परन्तु नरेन्द्र मोदी एक कुशल प्रशासक होने के साथ साथ स्वच्छ छवि के राजनेता भी है। इसी स्वच्छ छवि के सहारे उन्होंने गुजरात के बाहर से बडी मात्रा में विनिवेश आकर्षित किया तथा सम्पूर्ण देश में गुजरात को उन्होंने तेजी से प्रगति के मार्ग पर अग्रसर होने वाला सर्वोत्तम प्रदेश बना दिया। बडे पैमाने पर हुए इस विनियोग (जो मुख्यत: रिलाइन्स व एस्सार के तेल क्षेत्र में ही था) से अपेक्षाकृत रोजगार के कम अवसर उत्पन्न हुए जिससे ग्रामीण क्षेत्र के लोग मोदी के इस आर्थिक विकास के सिध्दांत को समझ नहीं पाये। गुजरात में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में भी बढोत्तरी हुई। विपक्षी दलों ने रोजगार के उत्पन्न हुए कम अवसर व बढती मंहगाई को नरेन्द्र मोदी के विरुध्द अस्त्र बनाया। इधर उत्तराखण्ड, पंजाब व उत्तरप्रदेश में शासित रही पार्टियां चुनावों में पराजित हो गयी। इस आधार पर मोदी को भी अपनी वापसी खतरे में पडी दिखाई दीं । स्वंय उनकी ही भाजपा के नेता सुरेश मेहता व केशू भाई पटेल उनके लिए गड्ढ़ा खोद रहे थे। भाजपा ने गुजरात में गत तीन चुनाव जीते हैं । यदि चौथी बार जीतना है तो कडी मेहनत तो करनी ही पडेगी क्योंकि पश्चिमी बंगाल के अलावा भारत के किसी भी राज्य में लगातार चौथी बार एक ही दल सत्ता में नहीं आया है। सोनिया के मौत के सौदागर के बयान से नरेन्द्र मोदी को ही फायदा मिलता नजर आने लगा है रही सही कसर निर्वाचन आयोग ने सोनिया व नरेन्द्र मोदी को नोटिस भेज कर मौत के सौदागर वाले बयान को पर्याप्त प्रचार देकर पूरी कर दी है।

नरेन्द्र मोदी ने हिन्दुओं से अपील की है कि इस्लामिक आतंकवादियों ने भारत में पिछले तीन वर्षों में 5,617 लोगों को अपनी आतंकवादी घटनाओं में मार दिया है जबकि गुजरात में केवल एक ही व्यक्ति आतंकवादियों के द्वारा मारा गया है। भाजपा ने ही गुजरातवासियों की रक्षा की है। कांग्रेस ने पोटा को हटा कर आतंकवाद को बढाने में सहयोग दिया है। पंजाब में खालिस्तान के लिए सिख आतंकवाद उस समय पनपा जब कांग्रेस शासन में थी। कश्मीर में निर्दोष लोगों के साथ साथ सेना पर आतंकवादी हमले करके हजारों लोगों को मारा जा रहा है जबकि वहां कांग्रेस की सरकार है। पश्चिमी बंगाल में कम्युनिस्ट पार्टी ने लोगों के मौलिक व संवैधानिक अधिकारों को नजरादांज करके नन्दीग्राम जैसी भयंकर घटनाओं को अंजाम दिया तथा नक्सली आतंकवाद पनपा वहां भी कांग्रेस का सीधा सीधा शासन नहीं परन्तु फिर भी केन्द्र में सरकार चलाने के लिए कांग्रेस को वामपंथियों की बैसाखी के सहारे की आवश्यकता है इसलिए पश्चिमी बंगाल में आतंकवाद को रोकने में कांग्रेस चुप्पी साधे हुई है। उत्तरप्रदेश में भी आतंकवादियों ने अपनी गतिविधियां बढायी हैं। वहां की बसपा सरकार को कांग्रेस का समर्थन प्राप्त है क्योंकि राष्ट्रपति के चुनाव में कांग्रेस ने बसपा का साथ ग्रहण किया था अत: उसके अहसान तो उतारने पडेंगे ही।

आंतकवाद के बढने के लिए किसी भी दल व शासन तंत्र को दोष देकर उसको 'मौत के सौदागर' ठहराना कतई ठीक नहीं है। आंतकवादी घटनाओं को रोकना सुरक्षा बलों का मामला होता है उसी के ऊपर छोडना चाहिए व आतंकवाद के रोकने के मामले में राजनीतिक हस्तक्षेप बिल्कुल भी नहीं किया जाना चाहिए। आवश्यकता इस बात की है कि सभी दल राष्ट्रवाद के सहारे आतंकवाद से लडें। पुलिस व सेना के बंधे हाथ खोलें। आतंकवादियों से निपटने के लिए कुछ कुर्बानी तो देनी ही पडेगी। पुलिस व सेना जब आतंकवादियों के प्रति सख्त व तेजी से कार्यवाही करेगी तभी आतंकवादियों के बढते हौसले रुक पायेंगें। राजनीतिक हस्तक्षेप के कारण पुलिस व सेना का मनोबल टूटता है जिससे आतंकवादियों के हौसले बुलन्द होते है।
(नवोत्थान लेख सेवा हिन्दुस्थान समाचार)

1 टिप्पणी:

Rahul Jain ने कहा…

bandhu lage raho, aacha likhte ho.