विजय ही विजय है

बुधवार, 5 दिसंबर 2007

हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव पर विशेष


लेखक- डा. कुलदीप चन्द अग्निहोत्री


गुजरात और हिमाचल प्रदेश दोनों प्रदेशों में हो रहे विधानसभा चुनावों में भाजपा अपनी जीत के प्रति आश्वस्त दिखाई दे रही है। गुजरात का चुनाव तो एक प्रकार से अंतरराष्ट्रीय फोकस में ही आ गया है क्योंकि यह चुनाव केवल भाजपा की ही नहीं बल्कि देश की भविष्य की राजनीति के दिशा संकेत भी देगा। पश्चिमोत्तर में होने वाले हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं। हिमाचल प्रदेश के चुनाव आस पास के कई राज्यों के चुनावों को प्रभावित करते हैं। भाजपा इस प्रदेश में सरकार बनाने की दावेदारी भी कर रही है। लेकिन अब तक इस रास्ते में एक ही बाधा आ रही थी। भाजपा जीतती है तो मुख्यमंत्री कौन बनेगा इसको लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं थी और भाजपा हाइकमांड शायद इस अस्पष्टता को चुनावों में लाभकारी मान रहा था। भावी मुख्यमंत्री को लेकर प्रो. प्रेम कुमार धूमल के साथ साथ शांताकुमार का नाम भी मीडिया उछालता रहता है। उससे कार्यकर्ता में भी भ्रम पैदा होता है और प्रदेश की जनता में भी दुविधा बनी रहती है। प्रो. प्रेम कुमार धूमल अभी हाल ही में लोकसभा का चुनाव जीते थे, इसलिए कुछ लोगों ने यह अनुमान लगाना शुरु कर दिया था कि उनकी वापसी का रास्ता कठिन है। इससे भी भाजपा को नुकसान होने की संभावना बढती जा रही थी ।

कांग्रेसी खेमा यह चाहता था कि चुनाव के दौरान भाजपा अपने मुख्यमंत्री प्रत्याशी के नाम का उल्लेख न करे। उससे कांग्रेस को यह कहने का अवसर मिल जाता था कि भाजपा में फूट है और उसके भीतर मुख्यमंत्री के कई प्रत्याशी हैं। इसके चलते भाजपा किसी एक प्रत्याशी के नाम की घोषणा करने में हिचकिचा रही है। कांग्रेस का मुख्य आधार ऊपरी और पुराने हिमाचल में ही है। परंतु अपने पांच साल के मुख्यमंत्रित्व काल में प्रो. प्रेम कुमार धूमल ने पुराने हिमाचल में भी भाजपा का एक बहुत बडा समर्थक आधार खडा करने में सफलता प्राप्त कर ली थी। इसलिए कांग्रेस को भय था कि यदि भाजपा मुख्यमंत्री पद के प्रत्याशी का नाम और खास कर प्रो. धूमल के नाम की घोषणा कर देती है तो उसे पुराने हिमाचल में भी काफी नुकसान हो जाता। लेकिन अलग कारणों से भाजपा के कार्यकर्ताओँ की इच्छा थी कि चुनाव से पूर्व भावी मुख्यमंत्री के नाम की घोषणा कर दी जानी चाहिए।

भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने कल अनिश्चय की स्थिति को समाप्त कर दिया। उन्होंने यह घोषणा कर दी कि चुनाव प्रो. प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व में लडे जाएंगे और वही सत्ता में आने पर मुख्यमंत्री पद के प्रत्याशी होंगे। इस घोषणा से निश्चय ही भाजपा को नया आत्मबल प्राप्त होगा और शांता कुमार ने जिस प्रकार पार्टी के इस निर्णय का प्रसन्न मन से स्वागत किया है उनसे उन विश्लेषकों की अटकलों को भी विराम लग जाएगा जो शांता और धूमल को एक दूसरे के आमने सामने खडा करने में ही तमाम ऊर्जा खर्च करते रहते हैं। धूमल शायद भाजपा के ऐसे पहले नेता हैं जिनका नये और पुराने दोनों क्षेत्रों में समान सम्मान और आधार है। धूमल की सबसे बडी पूंजी कार्यकर्ताओँ में उनकी पैठ है। वे प्रदेश में जमीन से जुडे नेता माने जाते हैं। प्रदेश की जनता और कार्यकर्ता सहज भाव से उनसे बात भी कर सकता और अपने सुख दुख सांझी कर सकता है। धूमल राजनैतिक मतभिन्नताओं और विद्वेषों को बहुत दूर तक खींचने के आदी नहीं हैं। जिसके कारण उनके विरोधी भी उनकी प्रशंसा करते हैं। धूमल का नाम मुख्यमंत्री के पद के लिए लेकर भाजपा ने कांग्रेस की रणनीति पर छक्का मारा है ।

इसके साथ ही भाजपा ने यह प्रयास किया है कि ईमानदार, कर्मठ और संगठन के प्रति कार्यकर्ताओं को टिकट दिये जाएं। आज सभी राजनीतिक दलों में निहित भ्रष्ट तत्वों की घुसपैठ हो रही है। भाजपा ने ऐसा प्रयास किया है कि ऐसे तत्वों को टिकट न दी जाए। जबकि इसके विपरीत कांग्रेस ने टिकट आवंटन में इस प्रकार का बोझ अपने मन पर नहीं लादा। विधानसभा के उपाध्यक्ष का टिकट सोनिया गांधी के रसोइये के बेटे को दे दिया गया। इससे पूरे सोलन जिला की कांग्रेस में हा हा कार मचा हुआ है। इसी प्रकार मुख्यमंत्री वीरभद्र के पारिवारिक सदस्य कहे जाने वाले सिंगीराम की जगह सोनिया गांधी के किसी बाडीगार्ड को दिया गया है । सिंगीराम पिछले तीस सालों से विधायक बनते चले आ रहे हैं। हिमाचल में सोनिया गांधी की तानाशाही के खिलाफ विद्रोह के स्वर उठ रहे हैं। निश्चय ही इससे भाजपा को फायदा मिलेगा।

चुनावी रणनीति में कांग्रेस की दरारें यहां साफ और स्पष्ट दिखाई दे रही हैं। भाजपा ने भौगलिक संतुलन बना कर हिमाचल के सभी वर्गों की भावनाओं का सम्मान करने का प्रयास किया है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष जयराम ठाकुर मंडी जिले के रहने वाले हैं। मंडी हिमाचल प्रदेश का तीसरा महतवपूर्ण खंड है। मंडी के हाथों में भाजपा की कमान शायद पहली बार ही आयी है। इसलिए मंडी में भाजपा का प्रदर्शन आगे से बेहतर होगा ऐसा माना जा रहा है। जयराम ठाकुर ने पिछले कुछ अर्से से निरंतर प्रवास कर भाजपा कार्यकर्ताओं में वैचारिक प्रतिबध्दता जागृत की है और मंडी जिले में विशेष कर भाजपा के पक्ष में एक भावात्मक उभार पैदा किया है। कांगडा जिले में जो प्रदेश का सबसे बडा जिला है, शांता कुमार का खासा जनाधार है और यह जिला व्यक्तिविशेष से ऊपर उठ कर पंजाब के समय से ही भाजपा समर्थक जिला रहा है। कांग्रेस की सरकार जिस प्रकार कांगडा जिले के साथ विकास के मामले में मतभेद करती है उससे भी यहां के लोगों में कांग्रेस के प्रति रोष बना रहता है। हमीरपुर, ऊना और बिलासपुर धूमल के गृह जिले हैं। कुछ माह पहले हुए लोकसभा की सीट के लिए उपचुनाव में धूमल ने दो विधानसभा सीटों को छोड कर बाकी सभी विधानसभाई क्षेत्रों में बढत हासिल की थी। इससे उनके प्रभाव का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। भाजपा द्वारा की गई ऐसी सफल मोर्चाबंदी में केवल एक ही कमी थी कि इस चुनावी लडाई का सेनापति कौन होगा ? राजनाथ सिंह ने उसकी घोषणा कर के इस अंतिम कमी को भी दूर कर दिया है और यकीनन भाजपा को इससे लडाई लडने में आसानी होगी ।
(नवोत्थान लेख सेवा हिन्दुस्थान समाचार)

कोई टिप्पणी नहीं: