विजय ही विजय है

शुक्रवार, 30 नवंबर 2007

आदर्श के रूप में गुजरात

लेखक- राजनाथ सिंह सूर्य

स्वर्गीय लक्ष्मीकांत तिवारी उत्तर प्रदेश के मूर्धन्य पत्रकार थे। दायित्व की दक्षता के साथ-साथ हास-परिहास से सदैव प्रफुल्लित रहने वाले लक्ष्मीकांत तिवारी उस समय टूट गए जब उनके होनहार पुत्र की मोहल्ले के गुंडों ने चाकू मारकर हत्या कर दी। वह कई महीने घर से नहीं निकले। एक दिन अचानक विधानभवन स्थित प्रेस क्लब आ गए। वहां बैठे सभी लोग चुप हो गए, लेकिन तिवारी जी ने अपने पुराने अंदाज में लोगों को गुदगुदाना शुरू कर दिया। थोड़ी देर बैठने के बाद मुझसे बोले, चलो तुम्हारे कार्यालय चलता हूं। विधान भवन के द्वार पर निकलते समय एक और वरिष्ठ पत्रकार मिल गए। तिवारी जी को देखते ही लंबी सांस लेकर बोले, आपके बेटे के बारे में जानकर बहुत दु:ख हुआ। उनकी बात सुनकर तिवारी जी लड़खड़ा गए। थोड़ी देर बाद बोले, मैं जिस बात को भूलना चाहता हूं, सहानुभूति दिखाने वाले उसी को याद दिला देते है। इस घटना को तीस वर्ष के लगभग हो गए। जब-जब देश के सेकुलरिस्ट गुजरात के पीड़ितों के नाम पर एकजुटता दिखाकर मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को घेरने का प्रयास करते है तब-तब उक्त घटना मुझे याद आ जाती है। जैसे तिवारी जी अपने बेटे की मौत का गम भूल जाना चाहते हैं उसी तरह गुजरात के लोग भी गोधरा और उसके बाद की घटनाओं को भूल जाना चाहते है। उस काले अध्याय के बाद गुजरात ने विकास की जैसी दिशा पकड़ ली है वही ऐसी त्रासदी से उबरने का सर्वोत्तम उपाय है। जो लोग सार्वजनिक रूप से नरेन्द्र मोदी से गुजरात को मुक्त कराने की मुहिम चला रहे है वे भी यह स्वीकार किए बिना नहीं रह पाते हैं कि देश में यदि सर्वाधिक विकासोन्मुख कोई राज्य है तो वह गुजरात है और इसका श्रेय भी वे नरेन्द्र मोदी को देते है। आज के राजनीतिक माहौल में जहां ज्यादातर मुख्यमंत्री या अन्य राजनेता किसी न किसी निजी आचरण के कारण चर्चित है तब नरेन्द्र मोदी की चर्चा उनकी प्रशासन क्षमता के कारण हो रही है।

गुजरात में विधानसभा का चुनाव का वक्त आ गया है। नरेन्द्र मोदी के खिलाफ देश के सेकुलरिस्टों और कांग्रेस के साथ-साथ भाजपा के कुछ असंतुष्टों ने कमर कस ली है, लेकिन वे जो भी वार करते है उसकी धार मुड़ जाती है। तहलका द्वारा गोधरा के बाद की स्थिति के संदर्भ में जो स्टिंग आपरेशन किया गया उसके प्रसारण से देश के अन्य भागों में चाहे जैसी प्रतिक्रिया रही हो, गुजरात में उस कथित रहस्योद्घाटन को कोई महत्व नहीं दे रहा। अब तो सेकुलरिस्ट भी उसकी चर्चा नहीं करते, क्योंकि उन्हे भय है कि वर्णित तथ्यों के प्रचार का लाभ नरेन्द्र मोदी को ही मिलेगा। गुजराती स्वभाव से अध्यावसायी हैं। उनमें उद्यमशीलता कूट-कूट कर भरी हुई है। भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनने के बाद से इस गुजराती स्वभाव को परवान चढ़ाने का प्रयास किया गया। नरेन्द्र मोदी ने उसे सफल कर दिखाया। साबरमती नदी में नौकायन हो रहा है। नदियों का जल समुद्र में जाने से रोक कर अनेक विशाल जलाशयों में संरक्षित किया गया ताकि लोगों को पर्याप्त जल मिल सके। कृषि में भी इस जल का भरपूर उपयोग हो रहा है। गुजरातियों की मानसिकता का अनुमान भयावह भूकंप से हुई तबाही के बाद पुन: संरचना के प्रयासों की सफलता से लगाया जा सकता है। ऐसी मानसिकता वाले अवाम को जब उसी मानसिकता का नेतृत्व मिल जाता है तो उसका वही परिणाम होता है जो आज गुजरात में हो रहा है। नरेन्द्र मोदी को राजनीतिज्ञ चाहे जिस दृष्टि से देखते हों, उनकी अपनी पार्टी में भी उनके प्रति चाहे जैसा असंतोष हो, गुजरात की जनता तो इस संभावना से चिंतित है कि आगामी लोकसभा चुनाव के बाद नरेन्द्र मोदी की भूमिका कहीं दिल्ली में केंद्रित न हो जाए। वे मोदी को अभी मुख्यमंत्री के रूप में ही देखना चाहते है।

यह आकलन उन सेकुलर पत्रकारों का है जो मोदी को जेल के सीखचों में बंद देखना चाहते है। मेरा मकसद नरेन्द्र मोदी की तारीफ में कसीदे काढ़ना नहीं है और न मेरा तात्पर्य यह समझाने का प्रयास करना है कि मोदी की चुनावी सफलता सुनिश्चित है। द्वितीय विश्व युद्ध जीतने के बावजूद यदि ब्रिटेन में विंस्टन चर्चिल चुनाव हार सकते हैं तो गुजरात में नरेन्द्र मोदी क्यों नहीं हार सकते। हमारे देश में चुनाव में हार-जीत तात्कालिक उभरी स्थानीय भावना का अधिक योगदान होता है। जो लोग गोधरा के बाद की घटनाओं को उजागर करने में लगे है वे ऐसा करते समय यह भूल जाते है कि आखिरकार बाद की घटनाएं क्यों घटित हुईं। गोधरा रेलवे स्टेशन पर साबरमती एक्सप्रेस के डिब्बे में दर्जनों लोगों को जिंदा जला देने की प्रतिक्रिया को वे लोग स्वाभाविक नहीं मानते जो विवादित ढांचा ध्वस्त होने के बाद की प्रतिक्रिया को स्वाभाविक मान लेने की वकालत बराबर करते रहे हैं। गोधरा न हुआ होता तो बाद की घटनाएं न होतीं। इसलिए जब बाद की घटनाओं को उभारा जाता है तो गोधरा अपने आप उभरकर सामने आ जाता है।

गुजरात के सभी विचारवान लोगों का मानना है कि उस काले अध्याय को भूलकर भविष्य की ओर देखने में ही गुजरात का भला है। नरेन्द्र मोदी ने यह किया और उसका लाभ प्रत्येक गुजराती को मिल रहा है। अतीत में जब भी कहीं ऐसी घटनाएं हुई है उन्हे और कुरेदने के बजाय मरहम लगाने का प्रयास किया गया। इसी कारण दंगों की जांच रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की जाती रही है, लेकिन अब इस मामले में भी कांग्रेस ने सेकुलरिस्टों और वामपंथियों के दबाव में झुकना शुरू कर दिया है। जिस कांग्रेस ने राजीव गांधी हत्याकांड में डीएमके की लिप्तता के संदर्भ में जैन कमीशन के निष्कर्ष के आधार पर गुजराल सरकार को गिरा दिया वही आज डीएमके के साथ मिलकर केंद्र की सत्ता चला रही है। यदि यह प्रयास अतीत के घावों को न कुरेदने की नीति के अनुरूप है तो फिर ऐसे अन्य घावों पर मरहम लगाने के बजाय उन्हें कुरेदने की कोशिश क्यों की जा रही है। गुजरात की जनता ही अब इसका उत्तर देगी।

रविवार, 25 नवंबर 2007

आपरेशन कलंक और गुजरात का सच - बलबीर पुंज

विगत 25 अक्टूबर को कुछ टीवी चैनलों पर आपरेशन कलंक और गुजरात का सच शीर्षक से गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को निशाना बनाने के लिए किए गए स्टिंग ऑपरेशन को प्रसारित किया गया। कांग्रेस को मदद पहुंचाने में जुटे चर्च और विदेशी सहायता प्राप्त कुछ स्वयंसेवी संगठनों के वित्तपोषण पर रची गई इस साजिश का एक ही उद्देश्य था, 2002 के गुजरात दंगों के जख्मों को कुरेद कर कांग्रेस के लिए चुनावी मुद्दा उपलब्ध कराना और भाजपा सरकार ने अपने कार्यकाल में जिस विकसित और सशक्त गुजरात का निर्माण किया है उसकी ओर से जनता का ध्यान हटाकर समाज को पंथिक तनाव में झोंकना। जिन चौदह लोगों के बयान कैमरे में कैद किए गए हैं उनमें से तीन- बजरंग दल के पूर्व नेता बाबू बजरंगी, विश्व हिंदू परिषद के कार्यकर्ता सुरेश रिचर्ड और रमेश दवे का सफेद झूठ सामने आ चुका है। बाबू बजरंगी और रिचर्ड ने कैमरे पर कहा कि उसने नरोदा पाटिया में मुसलमानों की हत्या की और पल-पल की जानकारी गृहमंत्री को मिलती रही। गृहमंत्री और मुख्यमंत्री से उसे शाबाशी भी मिली और जब नरेंद्र मोदी दंगे के एक दिन बाद (28 फरवरी) नरोदा पाटिया के दौरे पर आए तो उन्हें धन्यवाद कहा। आधिकारिक रिकार्ड के अनुसार उक्त तिथि को मोदी वहां गए ही नहीं।

बाबू बजरंगी और रिचर्ड की तरह विहिप कार्यकर्ता रमेश दवे ने दावा किया कि दरियापुर क्षेत्र के डीएसपी एसके गांधी ने उनसे पांच मुसलमानों को मारने का वादा किया था और उन्होंने अपना वादा पूरा भी किया। जबकि आधिकारिक रिकार्ड के अनुसार दरियापुर दंगे के एक माह बाद गांधी की वहां बहाली हुई थी और उनके कार्यकाल में दंगे की एक भी घटना नहीं हुई। जालसाज पत्रकारों का एक और निशाना बने सरकारी वकील अरविंद पांड्या। उनके मुंह से नानावती आयोग के दोनों न्यायाधीशों की प्रामाणिकता और निष्पक्षता पर कीचड़ उछलवाया गया था, जबकि पांड्या के अनुसार एक चैनल के पुराने परिचित पत्रकार ने उनसे एक टीवी सीरियल पागल तमाशा के लिए संपर्क किया था। पत्रकार ने कुछ वास्तविक चरित्रों को शामिल करने के नाम पर उन्हें अपने जाल में लपेट लिया। अरविंद पांड्या को एक लिखित स्क्रिप्ट पढ़ने को दी गई। तीन-साढ़े तीन घंटे की इस रिकार्डिग में से अनुकूल वाक्यों को इस स्टिंग ऑपरेशन में जोड़ दिया गया।


वस्तुत: गुजरात में चुनावी सरगर्मी बढ़ने के साथ ही सेकुलरिस्टों का दुष्प्रचार भी तेज हो गया है। गोधरा संहार की प्रतिक्रिया में भड़के दंगों में 790 मुसलमान और 254 हिंदू मारे गए थे। पांच साल पूर्व की इस घटना के लिए अब तक पंद्रह से अधिक हिंदू-मुसलमानों को दंडित किया जा चुका है। इसकी तुलना में 23 साल पूर्व कांग्रेस पार्टी द्वारा प्रायोजित देशव्यापी सिख नरसंहार में तीन हजार से अधिक सिख मारे गए थे, किंतु अब तक केवल तेरह पर ही आरोप लगाए गए हैं, दोष सिद्ध होना बाकी है। कांग्रेस से जुड़े तमाम बड़े नेता आरोपों से बरी किए जा चुके हैं। जगदीश टाइटलर पर अभी मामला अदालत में चल रहा है, लेकिन कांग्रेस के बचाव में सीबीआई ने हाल में उन्हें भी क्लीन चिट दे दी, जिस पर अदालत ने अपनी आपत्ति भी व्यक्त की है। सेकुलर मीडिया को यहां दायित्वबोध नहीं होता। लोकतंत्र का सजग प्रहरी होने के नाम पर गुजरात दंगों के दौरान सेकुलर मीडिया ने जिस तरह अतिरंजित कथानकों के साथ समाचार परोसे, उसका एक ही उद्देश्य था- सारी दुनिया में नरेंद्र मोदी और भाजपा की छवि हिटलर और नीरो के रूप में बनाना। हकीकत यह है कि वहां के स्थानीय समाचार पत्र गुजरात के जिस सच को प्रकाशित कर रहे थे उसकी सेकुलर राष्ट्रीय मीडिया में अनदेखी की गई, किंतु राज्य की जनता उससे प्रभावित नहीं हुई।

गुजरात दंगों के लिए भाजपा पर लगाए जा रहे झूठे आरोपों के बावजूद जनता ने दूसरी बार भी राजकाज चलाने का भार भाजपा को सौंपा। उसके बाद हुए नगर निगम, नगर पालिका और ग्राम सभा के चुनावों में भी भाजपा को भारी बढ़त के साथ जीत हासिल हुई। भाजपा के दूसरे कार्यकाल में एक भी दंगा नहीं हुआ। दिल्ली-कोलकाता-चेन्नई में आज चौबीस घंटे भले ही बिजली की आपूर्ति नहीं हो, किंतु गुजरात के गांवों में दिन-रात बिजली की अबाधित आपूर्ति हो रही है। कभी पानी की किल्लत से जूझ रहे गांवों को नियमित जल उपलब्ध हो रहा है। गुजरात आज दूसरे राज्यों को भी जल की आपूर्ति कर रहा है। विकास के मामले में गुजरात देश का अव्वल व समृद्ध राज्य है। यहां विकास दर 10 प्रतिशत से अधिक है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने कहा है कि विदेशी निवेश के मामले में गुजरात पहले नंबर पर है और पूरे देश का चौथाई से अधिक विदेशी पूंजी निवेश अकेले गुजरात में हुआ। अंतरराष्ट्रीय संस्था-अर्नस्ट एंड यंग ने गुजरात की 72 योजनाओं का अध्ययन किया और उसे देश के दूसरे राज्यों के लिए अनुकरणीय बताया। राजीव गांधी फाउंडेशन ने गुजरात को सर्वोत्तम राज्य कहा है। अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य संगठन ने गुजरात की स्वास्थ्य संबंधी योजनाओं की सराहना की है, जिसे हाल में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री भी दोहरा चुके हैं। जिस विशेष आर्थिक क्षेत्र (सेज) योजना के कारण कई राज्यों में हिंसा व्याप्त है, उस सेज योजना में भी गुजरात सबसे आगे है। कहीं कोई हिंसा नहीं। 2007 में जो राज्य विकास की प्रयोगशाला बन चुका है, उसे बार-बार 2002 के कथित हिंदुत्व की प्रयोगशाला से क्यों जोड़ा जा रहा है। सन 2002 से ही नरेंद्र मोदी और गुजरात पर निरंतर कीचड़ उछालने में लगे शबनम हाशमी, तीस्ता सीतलवाड़, हर्ष मंदर, मुकुल सिन्हा, कैथोलिक चर्च के फादर सेड्रिक प्रकाश, दलित नेता मक्वान मार्टिन और उनके द्वारा खड़े किए गए स्वयंसेवी संगठनों के वित्तीय स्त्रोत क्या हैं।

यदि फर्जी आंकड़ों और गवाहों के आधार पर 2002 की गुजरात सरकार नरसंहार की आरोपी है तो 1984 की कांग्रेस सरकार को क्या संज्ञा दी जाए। गुजरात के दंगों के तुरंत बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने दंगों को देश का कलंक की संज्ञा दी और मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को राजधर्म निभाने का निर्देश दिया। इसके विपरीत 1984 के सिख दंगों के मामले में देश को 21 वर्ष प्रतीक्षा करनी पड़ी। 2005 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 1984 के दंगों के लिए देश से क्षमा याचना की। 1984 के दंगों की विभीषिका के बीच तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने दंगों को लगभग न्यायोचित ठहराते हुए कहा था, जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती ही है। अगले महीने गुजरात की जनता को अपनी नई सरकार चुननी है। चुनावी मुद्दा क्या होना चाहिए। 2002 का गोधरा कांड और उसके बाद के दंगे या गुजरात का अब तक का विकास और आगे की योजना। नरेंद्र मोदी, जिनका वर्षो से पंथिक आधार पर दानवीकरण किया गया, तो साढ़े पांच करोड़ गुजरातियों के विकास और अस्मिता के मुद्दे पर चुनाव लड़ रहे हैं, किंतु उनके विरोधी दंगों के जख्मों को कुरेद कर अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकना चाहते हैं। क्या यह भारतीय सेकुलरिज्म का घिनौना सच नहीं।
लेखक भाजपा के राष्ट्रीय सचिव हैं।

शुक्रवार, 2 नवंबर 2007

गुजरात विधानसभा चुनाव पर विशेष


विकास और विचारधारा होगा मुख्य चुनावी मुद्दा : अरुण जेटली

भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव श्री अरुण जेटली गुजरात के चुनाव प्रभारी बनाए गए हैं। वे पिछले चुनाव में भी वहां के प्रभारी थे और गुजरात से राज्यसभा सदस्य भी हैं। उन्होंने गुजरात को पिछले कुछ वर्षों में बहुत करीब से देखा, परखा और जांचा है। राज्य के वर्तमान चुनावी परिदृश्य पर मैंने श्री जेटली से 'कमल संदेश' पत्रिका के लिए बातचीत की। प्रस्तुत है संपादित अंश-

चुनाव कार्यक्रमों की घोषणा के बाद गुजरात में क्या दृश्य आपके सामने है?
गुजरात का चुनाव मोटे तौर पर द्विध्रुवीय चुनाव है। प्रमुख रूप से चुनाव
भाजपा और कांग्रेस के बीच है। भाजपा को इस चुनाव में एक विशिष्ट लाभ
है। यह लाभ इस रूप में है कि हमारे पास श्री नरेन्द्र मोदी का मजबूत
नेतृत्व है। भाजपा की विचारधारा मुख्यत: राष्ट्रवादी विचारधारा है, जो
गुजरात के लोगों की भावनाओं से मेल खाती है।

आपकी राय में वे कौन से कारण है, जिनसे लोग प्रभावित होकर फिर से भाजपा सरकार को सत्ता में लाएंगे?
ऐसे मानने के अनेक कारण है, जिनसे मुझे विश्वास है कि भाजपा फिर से
गुजरात में सत्ता प्राप्त कर लेगी। पार्टी मोदी सरकार को उसके अपने प्रदर्शन
पर जिस तरह से लोगों का प्रतिसाद मिल रहा है, वही मेरे विश्वास का
आधार है। कांग्रेस ने राज्य में इस समय लोगों के साथ सम्पर्क करने का
कोई काम नहीं किया है। गुजरात में हमारी सरकार का प्रदर्शन और
विचारधारा प्रमुख मुद्दा बनी रहेगी। हमारा दृष्टिकोण राष्ट्रवादी और
आतंकवाद-विरोधी रहा है। पिछले कई वर्षों से राज्य में हमने बहुत
सफलतापूर्वक सरकार चलाई है। हमारे विरोधी, प्रमुखत: कांग्रेस, केवल
सामाजिक विभाजन और अल्पसंख्यकवाद को लेकर चल रहे है।

भाजपा किन प्रमुख मुद्दों को लेकर चुनाव लड़ेगी?
जैसा मैंने पहले कहा, गुजरात में हमारे मुख्य मुद्दे हमारा प्रदर्शन और
विचारधारा रहेगा। हमने एक उत्कृष्ट प्रकार का नेतृत्व प्रदान किया है। तो
दूसरी तरफ इसकी तुलना में यूपीए का दब्बू, अनिर्णयकारी तथा हर काम में
कोताही बरतने वाला नेतृत्व दिखाई पड़ता है, जिसने आतंकवाद से लड़ने की
ताकत को ही कमजोर कर दिया है। यूपीए और कांग्रेस केवल
अल्पसंख्यकवाद का इस्तेमाल करने में लगी हुई है। जहां तक हमारी सरकार
के प्रदर्शन की बात है, आज गुजरात देश के अत्यधिक विकसित राज्यों में
से एक है और भली-भांति प्रगति के मार्ग पर चल रहा है और इस सफलता
का प्रमुख श्रेय लोगों को, गुजरात भाजपा के नेतृत्व एवं भाजपा सरकार के
कार्य प्रदर्शन को जाता है।

चुनाव परिणाम के बारे में आपकी आशाएं क्या है?
जहां तक चुनाव परिणाम के बारे में मेरी आशा का प्रश्न है, मुझे लगता है
कि भाजपा के पास एक विशिष्ट लाभ है। सामान्यत: हम संख्या के रूप में
अपनी आशाएं व्यक्त नहीं करते है, परन्तु हमें विश्वास है कि भाजपा एक
अच्छे-खासे बहुमत से सत्ता में वापस आएगी।

आपकी आशावादिता का आधार क्या है?
जिस प्रकार से हमें पिछले कई महीनों से प्रतिसाद मिल रहा है, वही हमारी
आशावादिता का आधार है।

आप 2002 में भी चुनाव के समय गुजरात के प्रभारी थे और अब भी है। आप तब में और आज में क्या अन्तर देखते है?
2002 और 2007 के बीच एक बड़ा महत्वपूर्ण अन्तर आया है। 2002 में
श्री मोदी सरकार के लिए नए थे। लोगों ने उनके कामकाज को बहुत समय
तक परखा नहीं था। लोगों के पास उनके कामकाज को परखने का पर्याप्त
समय नहीं मिला था। अब पिछले अनेक वर्षों से उनके कामकाज के प्रदर्शन
को देखकर लोगों के मन में उनके नेतृत्व के प्रति और आस्था बढ़ गई है
और वे समझने लगे है कि श्री मोदी में काम करने की क्षमता है और वे
विकास के कार्य को सिरे तक पहुंचा सकते है।

पार्टी ने असंतुष्टों की नेतृत्व परिवर्तन की मांग को स्वीकार नहीं किया है। आप उन्हें पार्टी को चुनौती देने में कितनी गम्भीरता से लेते है?
यह बिल्कुल भी गम्भीर मामला नहीं है। मैंने देखा है कि असंतुष्टों ने जिन
मुद्दों को उठाया है, वे विचारधारा के मुद्दे नहीं हैं। ये सभी मुद्दे व्यक्तित्व
केन्द्रित हैं और इसलिए पार्टी उनके अनुरोध को स्वीकार नहीं कर सकती
थी। जो लोग कांग्रेस में शामिल होना चाहते है और भाजपा को हराने के
लिए विपक्ष के साथ मिलने को तैयार है, ऐसे लोगों को स्वयं को भाजपा का
असंतुष्ट कहलाने का कोई नैतिक हक नहीं रह जाता है। उन्होंने तो पार्टी के
राजनैतिक विरोधियों की भूमिका अपना ली है।

लगता है मोदी-विरोधी ताकतों ने मिलकर भाजपा को चुनौती दी है। आपकी रणनीति क्या है?
गुजरात में भाजपा और नरेन्द्र मोदी का समर्थन आधाार इतना व्यापक है
कि हमें इससे कोई चुनौती या खतरा दिखाई नहीं पड़ता है।

गुजरात में किनके बीच लड़ाई है?
यह लड़ाई गुजरात की कामकाज करने वाली सरकार और केन्द्र में यूपीए की
निष्क्रिय सरकार के बीच की लड़ाई है। यह एक राष्ट्रवादी विचारधारा और
अल्पसंख्यकवाद के बीच की लड़ाई है।

आपका क्या विचार है कि गुजरात चुनाव के परिणामों का राष्ट्रीय राजनीति पर कितना प्रभाव पड़ने जा रहा है?
राज्य के चुनाव परिणामों से लोकसभा में राजनीतिक समीकरण नहीं बदलेंगे। फिर भी, केन्द्र सरकार की विचारधारा के रूप में इन परिणामों का महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा। गुजरात चुनाव परिणामों से भारत में एक आदर्श के रूप में राष्ट्रवाद की नवजागृति अवश्य ही एक महत्वपूर्ण प्रभाव डालेगी। इससे अवश्य ही केन्द्रीय राजनीति की गतिविधियों पर प्रभाव पड़ेगा।