विजय ही विजय है

सोमवार, 29 अक्तूबर 2007

आर्थिक प्रगति में गुजरात ने कैसे लगायी लम्बी छलांग

लेखक- दीनानाथ मिश्र

हाल ही में भारतीय रिजर्व बैंक ने एक अध्ययन किया है जिसका निष्कर्ष यह है कि 2007 के दौरान सीधे विदेशी निवेश के जरिए भारत को कुल 69 अरब डॉलर पूंजी मिलेगी। यह आंकड़ा करीब 380 लाख करोड़ रुपए के बराबर है। उसमें से 25.8 प्रतिशत विदेशी पूंजी निवेश अकेले गुजरात राज्य में आया। यानि एक चौथाई से ज्यादा। इससे कम, घटते हुए क्रम में, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और तमिलनाडु में विदेशी पूंजी निवेश हुआ। बाकी राज्यों में तो और भी कम। गुजरात में भारत के पांच प्रतिशत लोग हैं और 6 प्रतिशत भूमि इसका क्षेत्रफल है। गुजरात का निर्यात देश का 12 प्रतिशत है। भारत के शेयर बाजार में इस राज्य की भागीदारी 30 प्रतिशत है। गुजरात में गरीबी रेखा के नीचे की आबादी लगभग 15 प्रतिशत है। करीब 40 प्रतिशत लोग शहरों में रहते हैं।

''सेंटर फॉर मॉनीटरिंग इंडियन इकोनॉमी'' के अनुसार आद्योगीकरण के क्षेत्र में गुजरात अन्य राज्यों से कहीं आगे प्रथम स्थान पर है। सोनिया गांधी की अध्यक्षता वाले राजीव गांधी फाउंडेशन ने अपने अध्ययन में यह निष्कर्ष निकाला था कि गुजरात में सर्वाधिक आर्थिक स्वतंत्रता है। गुजरात की शिक्षा दर 70 प्रतिशत से ज्यादा है। 2003, 2005 और 2007 में मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 'वाइबंरेट गुजरात' महासम्मेलन का आयोजन किया था। विश्व भर से उद्योगपति और निवेशक वहां आए। रतन टाटा, मुकेश अंबानी और कुमार मंगलम बिड़ला जैसे उद्योगपतियों ने गुजरात की आर्थिक गतिविधियों और चौमुखी विकास की जबरदस्त सराहना की। विशेष आर्थिक क्षेत्रों के मामले में भी गुजरात देश में प्रथम स्थान पर है। गुजरात में इस समय 51 से अधिक एसईजेड (विशेष आर्थिक क्षेत्र) कार्य कर रहे हैं। आर्थिक क्षेत्र के मामले में महाराष्ट्र को गुजरात ने पीछे छोड़ दिया है। गुजरात के लगभग 19000 गांवों में तीन फेज बिजली की आपूर्ति 24 घंटे होती है। इंग्लैण्ड में रहने वाले कपैरो ग्रुप के लॉर्ड स्वराज पाल ने कहा है कि मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राज्य में उच्च कोटि का बुनियादी ढांचा खड़ा किया है। गुजरात में उत्कृष्ट सड़कें हैं।

गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने चीन यात्रा के दौरान यह दावा किया था कि गुजरात विशेष आर्थिक क्षेत्र के मामले में भारत की राजधानी है। एक अन्य वक्तव्य में उन्होंने दावा किया कि पूरा गुजरात ही विशेष आर्थिक क्षेत्र है। सरदार सरोवर बांध बन जाने के बाद नर्मदा नदीं गुजरात की जीवन रेखा बन गई है। गुजरात में अब पानी का संकट नहीं है। वनवासियों को भी दूर गांव से पानी लाने की जरूरत नहीं है। उच्च शिक्षा और कम्प्यूटरीकरण के मामले में गुजरात तीव्रतर विकास करने वाला राज्य है। ई-गवर्नेन्स से अर्थात कम्प्यूटर के जरिए प्रशासन संभालने का सफल प्रयोग गुजरात में हुआ है। नतीजा यह है कि पिछड़े से पिछड़े गांव के गरीब से गरीब परिवार के खतरनाक बीमारियों से जूझ रहे रोगियों को सर्वोत्तम स्वास्थ्य सेवाओं से जोड़ दिया गया है। आवश्यकता होने पर वह श्रेष्ठतम चुनिन्दा अस्पतालों में इलाज करवा सकते हैं। गर्ववती महिलाओं की स्वास्थ्य सेवाओं का विशेष ध्यान रखा गया है।

'इण्डिया टुडे' ने पिछले पांच वर्षों में गुजरात को दो बार सर्वोत्तम शासन मुहैया कराने वाला राज्य कहा है। भाजपा और नरेन्द्र मोदी के कट्टर से कट्टर विरोधी भी विकास के सवाल पर नरेन्द्र मोदी का लोहा मानते हैं। भले ही कुछ अन्य मुद्दों पर उनका विरोध भी करते हों। गुजरात में इस दिसम्बर के मध्य में विधानसभाई चुनाव होने वाले हैं। प्रशासन में शुचिता और मुख्यमंत्री की व्यक्तिगत ईमानदारी के सवाल पर प्राय: उनका लोहा माना जाता है। प्रसिध्द अन्तर्राष्ट्रीय कंसलटेंसी कम्पनी 'अर्नस्ट एण्ड यंग' ने अपने विशद अध्ययन पर एक रिपोर्ट प्रस्तुत की है। उसमें गुजरात को भारत की विकास यात्रा और आत्म निर्भरता के मामले में एक सुनहरा उदाहरण बताया है। कहा है कि गुजरात सरकार ने 72 अभिनव पहल किए हैं और उन प्रायोगों की उपलब्धियों का व्योरा दिया है। यह ऐसे प्रयोग हैं जिसमें घिसे पिटे और पुराने लकीर के फकीर की विकास रेखाओं पर नहीं चले हैं, नई रेखाएं बनाई हैं।

यह नहीं कि नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व ने केवल उद्योग जगत की महाशक्तियों, बड़े बड़े व्यक्तित्वों को प्रभावित किया हो बल्कि वनवासी, किसान, महिलाओ, स्वरोजगार करने वाले युवाओं मध्यम वर्ग और निम्न वर्ग से भी सराहना हासिल कर रहे हैं। व्यापार और उद्योग जगत की दोनों प्रमुख संस्थाओं सीआईआई और फिक्की ने गुजरात का विशेष अध्ययन कराया है। और उनका भी वही निषकर्ष है जो आम धारणा है। गुजरात को लोग भारत की पेट्रो राजधानी भी कहते हैं। पिछले पांच वर्षों की गुजरात की विकास कथा दो-ढाई सौ शब्दों में नहीं कही जा सकती। कुछ सांकेतिक बातें यहां पर कही गई हैं।

मैं पिछले दिनो सूरत गया था। वहां मैं सूरत के विशेष आर्थिक क्षेत्र में भी गया। यह आधे मील लम्बे-चौड़े से भी बड़ा क्षेत्र है। इसमें कई सौ इकाइयां हैं। हजारों मजदूर काम करते देखे जा सकते हैं। निर्यात के लिए लदते हुए लम्बे चौड़े कंटेनर्स को भी देखा। क्या मतलब है इस विशाल उद्योग समूह का? इसका अर्थ है साढ़े पांच हजार करोड़ रूपए का इस वर्ष का निर्यात। इसका अर्थ है हजारों परिवारों की रोजी रोटी। इसका अर्थ है औद्योगिक विकास। इसका अर्थ है उद्यमिता को अवसर। इसके संचालक हैं एसएन शर्मा। शर्मा उस बिहार के जन्मे पढ़े उद्यमी हैं जिस राज्य को कहा जाता है कि राज्य में उद्यमी प्रतिभाएं नहीं हैं। गुजरात में उद्योगों और व्यवसाय को फलने फूलने के बड़े असवर उपलब्ध हैं। पूंजी उपलब्ध है। प्रतिभाशाली शिक्षित और प्रशिक्षित लोग उपलब्ध हैं। बुनियादी ढांचा है, सड़के हैं, हवाई अड्डे हैं। पैसेंजर सेवा के 9 हवाई अड्डे नियमित रूप से कार्य करते हैं। ऐसा किसी अन्य राज्य में नहीं है। छोटे मोटे अनेक बंदरगाह हैं। बंदरगाहों को जोड़ने वाली रेलवे लाइनें हैं। बिजली है, पानी है। यानि औद्योगीकरण के लिए जो कुछ चाहिए वह सब है। और इनके विकास का बहुत बड़ा हिस्सा पूरा किया है अपने छह वर्षों के शासन काल में मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी की गतिशील और दूरदृष्टि नेतृत्व ने।

आगामी चुनाव में जाहिर है मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच में होगा। 2002 के चुनाव गोधरा तथा उसके कारण घटित दंगों की पृष्ठभूमि में हुए थे। मीडिया और विरोधियों ने दंगों का पूरा दोष नरेन्द्र मोदी पर मढ़ दिया। मोदी देश और दुनिया में तब के सबसे बदनाम मुख्यमंत्री थे। लेकिन राज्य में नहीं। तमाम विरोधी अभियानों, गैर-राजनीतिक संगठनों की फौज के दुशप्रचारों और इसमें बढ़-चढ़ कर अतिरंजित प्रोपेगंडा करने वाले मीडिया समूहों के दानवीकरण के बावजूद नरेन्द्र मोदी दो-तिहाई बहुमत से जीत कर आए थे। लेकिन मोदी वैसे हैं ही नहीं, जैसे उन्हें चित्रित किया गया था। वह पूरे गुजरात को सामने रखकर चलते रहे। वह छह करोड़ गुजरात वासियों को विकास के पथ पर लेकर चले। प्रशासन और विकास यात्रा में उन्होंने गुजरात को ध्यान में रखा, हिन्दुआें और मुसलमानों को नहीं। और आज देखिए गुजरात कहां पहुंच गया है। ऐसी स्थिति में कांग्रेस 2002 के मुकाबले हतबल है। 2002 में कांग्रेस ने शंकर सिंह वाघेला के नेतृत्व में चुनाव लड़ा था। इस बार किसी को नेता पेश कर चुनाव लड़ने की स्थिति में कांग्रेस नहीं है।

वैसे प्रचार की आंधी नरेन्द्र मोदी के खिलाफ आज भी है। पिछले दिनों नरेन्द्र मोदी को प्रसिध्द भेंटवार्ताकार करन थापर ने अपने साप्ताहिक कार्यक्रम में बुलाया। उनकी कोशिश यही थी कि घूम-फिर कर गुजरात दंगों के लिए बदनाम किए गए नरेन्द्र मोदी को इस पुरानी जमीन पर खड़ा कर दिया जाए। मोदी उनके सवालों के जवाब, बिना राजनीतिक मात खाए हुए, टालू मुद्रा में दिया। मगर करन थापर भी कुछ कम नहीं थे। वह छवि के सवाल पर घूम-फिर कर गुजरात के दंगों पर आ जाते थे। अंतत: यह हुआ कि सिर्फ चार मिनट बाद ही नरेन्द्र मोदी ने एक गिलास पानी पिया और भेंटवार्ता का बहिर्गमन कर दिया।

केन्द्रीय गृह राज्यमंत्री ने गुजरात के दंगों में मरने वालों के मजहबी आंकड़े दिए हैं। उन आंकड़ों का मतलब यह है कि वह एकतरफा नहीं थे, दोतरफा थे। बड़ी संख्या में मुसलमान मारे गए लेकिन एक चौथाई संख्या में हिन्दू भी मारे गए। इसमें अगर गोधरा काण्ड के नम्बरों को जोड़ दिया जाए तो मरने वाले हिन्दुओं की संख्या मुसलमानों की संख्या की एक तिहाई से ज्यादा हो जाएगी। बहुत से मुसलमान उजाड़ दिए गए लेकिन हिन्दुओं की भी अच्छी खासी संख्या उजाड़ दी गई। गुजरात में और विशेष रूप से अहमदाबाद में दंगों का लम्बा इतिहास रहा है। कांग्रेस शासन में माधव सिंह सोलंकी के मुख्यमंत्री काल में 1969 में 2002 के मुकाबले कहीं बड़ा दंगा हुआ था। कहीं लम्बा चला था। उसमें हताहतों की संख्या कहीं अधिक थी। यह श्रेय नरेन्द्र मोदी को जाता है कि उन्होंने एक हफ्ते में ही दंगों पर काबू पा लिया। पुलिस की गोलीबारी से करीब सौ लोग मारे गए। हिन्दू भी मारे गए और मुसलमान भी। अहमदाबाद दंगा 1969 वाले दंगों की तरह था। वह नियोजित तो बिलकुल नहीं था। जबकि 1984 में नियोजित ढंग से कांग्रेस ने सिक्खों के खिलाफ दंगे कराए थे। इसकी पुष्टि अनेक सरकारी जांच रिपोर्टों में की गई है। लेकिन पांच साल बाद के इस चुनाव को भी गुजरात के दंगों के नाम पर लड़ने की कोशिश नरेन्द्र मोदी के विरोधियों की है और इसीलिए प्रचारतंत्र में नरेन्द्र मोदी की बहुप्रचारित दानव छवि को फिर से जीवित करने की कोशिश होती रही है।

लेकिन नरेन्द्र मोदी ने तो विकास का रिकॉर्ड बनाया है। उससे हिन्दुओं और मुसलमानों का पूरा समाज आगे बढ़ा है। विरोधियों की रणनीति भले ही अखबारों में कहीं झलक जाए मतपेटियों के हरगिज नहीं झलकेगी। आज तो नरेन्द्र मोदी तमाम विरोधियों की कोशिशों के बावजूद विकास पुरुष ही हैं। नरेन्द्र मोदी के प्रचार अभियान के केन्द्र में विकास है। विरोधी लोग चुनाव को नरेन्द्र मोदी के पक्ष और विपक्ष में जनमत संग्रह के रूप में कराना चाहते हैं। इससे कोई फर्क पड़ने वाला नहीं। चुनाव आयोग निष्पक्ष और स्वतंत्र चुनाव कराने के नाम पर नरेन्द्र मोदी पर अपने निर्णयों से जैसा दबाव बनाया है, वैसा दबाव हिमाचल, जहां करीब-करीब साथ ही चुनाव होने हैं, सरकार पर नहीं बनाया है। भाजपा और संघ परिवार के भीतर उनका जो विरोध है, उसका श्रेय भी नरेन्द्र मोदी को ही है। वह पार्टी के साथियों को साथ लेकर नहीं चलते। क्या आज का राजनीतिक महौल ऐसा है, जिसमें बिना व्यापक हितों से समझौता करके कोई मुख्यमंत्री शासन कर सकता है? संभव है ऐसी स्थिति हो। नरेन्द्र मोदी समझौतावादी नहीं हैं। अपने निर्णयों पर अडिग रहने की उनकी आदत है। वह तब भी ऐसे ही थे जब मुख्यमंत्री नहीं थे। अपनी बात से पलटते नहीं थे। जब संगठन कार्य में लगे थे तब भी मोदी वैसे ही थे। यही उनकी सफलता का राज है।

बुधवार, 24 अक्तूबर 2007

मोदी सरकार बनाम माकपा सरकार

45 मिनट में गुजरात की सम्पन्नता और गुजराती स्वाभिमान की बाबत अगर आपको कुछ जानना है तो अमदाबाद, सूरत, वडोदरा, राजकोट आदि-आदि पर इंटरनेट खंगालना छोड़िए, मयंक जैन का बनाया वृत्तचित्र 'इंडिया टुमोरो' यानी 'कल का भारत' देख लीजिए। गुजरात में विकास के सोपान किस खूबी से तय किए जा रहे हैं और औद्योगिक, आर्थिक, सांस्कृतिक क्रांति जन-जन को स्वाभिमान के भाव से कैसे भर रही है, मयंक ने इस फिल्म में जहां आंकड़ों से इन तथ्यों को पुष्ट किया है वहीं अपने-अपने क्षेत्र की प्रमुख विभूतियों ने गुजरात सरकार की दूरदृष्टिपूर्ण सोच की तारीफ की है। तत्कालीन राष्ट्रपति डा. अब्दुल कलाम, प्रतिपक्ष के नेता श्री लालकृष्ण आडवाणी, वाणिज्य मंत्री श्री कमलनाथ, शीर्ष उद्योगपति रतन टाटा, मुकेश अंबानी और कुमारमंगलम बिरला ने गुजरात में पूंजी निवेश को समझदारी भरा कदम कहा है और यह भी कि खुशहाल वातावरण देने में गुजरात का कोई सानी नहीं है।

गत 14 अक्तूबर को नई दिल्ली स्थित भाजपा मुख्यालय में विशेष प्रदर्शन के साथ इस वृत्तचित्र की सीडी जारी करते हुए भाजपा अध्यक्ष श्री राजनाथ सिंह ने गुजरात की मोदी सरकार की प्रशंसा की, उसके कामों, निर्णयों को सर्वहितकारी बताया। गुजरात में दिसम्बर में विधानसभा चुनाव होने हैं और इससे ठीक पहले इस वृत्तचित्र का प्रदर्शित होना वहां भाजपा सरकार के प्रचार को और बल ही देगा।

फिल्म की बात करें तो जिस तरह का वातावरण सेकुलरों ने मोदी शासन के विरुध्द अल्पसंख्यकों के मन में बनाया था वह इसके जरिए तार-तार करने की कोशिश की गई है। गुजरात के ही अनेक आम मुस्लिमों ने इस वृत्तचित्र में कहा है कि वे खुद को गुजरात में सुरक्षित महसूस करते हैं और राज्य की प्रगति में हिस्सेदारी कर रहे हैं।

फिल्म में राज्य में तेजी से हो रहे ग्रामीण और औद्योगिक विकास की झलक है तो यह भी बताया गया है कि कैसे मोदी शासन ने इसे आतंक रहित राज्य बनाया है। पिछले कुछ वर्षों से आतंक की कोई बड़ी घटना नहीं घटने दी गई है। इसमें गुजरात की तुलना उन राज्यों, खासकर मार्क्सवादियों के शासन वाले बंगाल से की गई है जहां स्थितियां काबू से बाहर होती रही हैं। सिंगूर और नंदीग्राम और हाल का रिजवानुर्रहमान कांड।

बताया गया है कि कैसे साल के 60 प्रतिशत मानव श्रम दिवस बंगाल में हड़तालों के कारण काम के बगैर गुजरे हैं जबकि, मुकेश अंबानी के शब्दों में, 'गुजरात में पिछले एक साल में रिलायंस ने एक भी मानव श्रम दिवस का घंटा गंवाया नहीं है।' रतन टाटा कहते हैं, 'गुजरात सबसे अधिक प्रगतिशील राज्य है।' कुमारमंगलम बिरला तो मोदी के दमदार नेतृत्व से अभिभूत हैं जबकि केन्द्रीय वाणिज्य मंत्री कमलनाथ कहते हैं, 'गुजरात को सामने रखकर हम भारत को प्रस्तुत करते हैं।' कुछ समय पहले अमदाबाद में देश-विदेश के शीर्ष उद्योगपति, पूंजी निवेशक और व्यवसायी वायब्रेन्ट गुजरात सम्मेलन में एकत्र हुए थे। इस सम्मेलन के पीछे मुख्यमंत्री मोदी की यही दूरदर्शी सोच थी कि प्रदेश सरकार ओद्यौगिक विकास के लिए जो प्रयास कर रही है उसकी पूरी जानकारी संबंधित वर्ग के लोगों को होनी चाहिए। इसीलिए उन्होंने सबको गुजरात बुलाया था और उनके सामने पूंजी निवेश की असीम संभावनाएं दर्शाई थीं। उद्यमियों ने प्रभावित होकर अरबों रुपए के निवेश की घोषणा की थी और गुजरात को निवेशकों की पहली पसंद बताया था।

वृत्तचित्र में वरिष्ठ राजनेताओं, उद्योगपतियों के अलावा नागरिकों के कथन दिए गए हैं। मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी तो पूरे गुजरात को 'एस.ई.जेङ' (सेज) कहते हैं। एस.ई.जेङ यानी स्प्रीच्यूअलिटी (आध्यात्मिकता), एंटरप्रेन्योरशिप (उद्यमिता) और जिंग (उमंग)।

मंगलवार, 23 अक्तूबर 2007

नरेन्‍द्र मोदी के विकास कार्य से अत्यंत प्रभावित हूं- महाश्वेता देवी


पश्चिम बंगाल की प्रसिध्द लेखिका महाश्वेता देवी का मानना है कि बुध्दिजीवियों के बीच वामपंथी मोर्चा जिस प्रकार से अलग-थलग पड़ता जा रहा है, उससे पता चलता है कि पश्चिम बंगाल में अपने 30 वर्ष के शासन के बाद भी उसने वहां कुछ भी तो नहीं किया है।नई दिल्ली में आयोजित नौंवे डी.एस. बोर्कर स्मृति व्याख्यान में 'माई विजन ऑफ इण्डिया: 2047 एडी' विषय पर भाषण देते हुए महाश्वेता देवी ने पश्चिम बंगाल की वामपंथी सरकार को विकास का कोई भी कार्य न कर पाने के लिए निकम्मा ठहराया और नरेन्द्र मोदी की गुजरात सरकार द्वारा जमीनी स्तर से विकास कार्य को बहुत ऊंचाई तक ले जाने के लिए प्रशंसा की।उन्होंने कहा कि मैं इस बात से अत्यंत प्रभावित हुई हूं कि गुजरात में कार्य-संस्कृति अत्यंत सुदृढ अवस्था में पहुंच गई है। शहरी और गांव की सड़कें बहुत अच्छी बनी हुई हैं, यहां तक कि दूर-दराज के गांवों तक में भी बिजली और पेयजल उपलब्ध है। मैं विशेष रूप से पंचायतों और स्थानीय स्तर पर बने स्वास्थ्य केन्द्रों में प्राप्त डाक्टरी सुविधाओं से बहुत प्रभावित हुई हूं। यहां की स्थिति पश्चिम बंगाल जैसी नहीं है, जहां अब तक भी गांवों और पंचायती क्षेत्रों में कहीं भी बिजली के दर्शन तक नहीं हो पाते है और सरकार की तथाकथित स्वास्थ्य परिसेवा कहीं दिखाई नहीं पड़ती है। महाश्वेता देवी ने आगे कहा कि पश्चिम बंगाल में 30 वर्षों से सीपीआई(एम) की वामपंथी सरकार का शासन चल रहा है, फिर भी वहां कोई उपलब्धि दिखाई नहीं पड़ती है। उन्होंने यह भी कहा कि पश्चिम बंगाल में भूखमरी से होने वाली मौतें और बाल मृत्यु दर का दौर-दौरा है।महाश्वेता देवी ने कहा कि मैंने इतिहास, लोक-संगीत और लोक-कहावतों की पुस्तकें पढ़ी है। जरूरत इस बात की है कि गांवों का दौरा किया जाए और ग्रामवासियों से मिला जाए। शायद मैंने इसी प्रकार भारत को जानना शुरू किया। आज 82 वर्ष की आयु में भी नन्दीग्राम का दौरा कर मैं यही कर रही हूं।

शुक्रवार, 19 अक्तूबर 2007

नरेन्द्र मोदी का विकास संबंधी प्रयोग

-बिनोद पांडेय
गुजरात विधानसभा चुनाव की घोषणा हो गई है। चुनाव की तारीख घोषित हो चुकी है। दिसंबर के 11 और 16 तारीख को मतदान होगा वहीं फैसले की तारीख 23 दिसंबर को रखी गयी है। चुनावी आहट को सुन दोनों प्रमुख दलों भाजपा और कांग्रेस ने इस साल के जनवरी महीने से ही अपनी तैयारी शुरू कर दी थी। सोनिया की सभा के आयोजन से जहां कांग्रेस ने साल के शुरूआत से ही चुनावी बिगुल बजा रखा था, वहीं मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी इसी अवधि में महिला सम्मेलनों का ताबडतोड आयोजन कर चुनावी तैयारी के प्रति अपनी गंभीरता का अहसास लोगों को दिला दिया था। बहरहाल अब चुनावी समर में योध्दा आमने-सामने है। चुनावी मुद्दों की तलाश और उसमें कांट-छांट के बाद दोनों ही प्रमुख दलों ने अपने तरकश में नुकीले तीर भी कमोबेश सजा लिये हैं।

कांग्रेस की छटपटाहट इस बार के चुनाव में किसी भी हालत में सत्ता पाने की है। कांग्रेसी कार्यकर्ता सत्ता से बाहर अधिक दिनों तक नहीं रह सकते हैं। यूपी चुनाव में राहुल के प्रयोग के बाद गुजरात में भी युवा प्रयोग को ही महत्व दिया जाना तय है। स्वर्गीय राजेश पायलट के सुपुत्र सचिन पायलट एक बार पिछले माह गुजरात आकर अपनी भूमिका बता गये हैं, लिहाजा राहुल का आना अभी बाकी है। राहुल अब पार्टी में राष्ट्रीय महासचिव बनने के बाद बडी जिम्मेवारी से जुड गये हैं, सोनिया गांधी के बाद उनका कद अब दायित्व में भी बडा हो गया है। गुजरात में कांग्रेस ने अपनी टीम में नायक की घोषणा करने की बजाय संयुक्त टीम के साथ ही चुनाव लडना श्रेयस्कर समझा है। टीम में केंद्रीय मंत्रियों की लंबी फेहरिस्त है, वहीं राज्य में भी नेताओं की कमी नहीं। लिहाजा मतदान से पहले नेतृत्व की घोषणा कर कांग्रेस चुनाव में कोई खतरा लेना नहीं चाहती। और इसी वजह से गुजरात का चुनाव इस बार दिलचस्प हो गया हैं। यानी गुजरात में नरेन्द्र मोदी की अगुआई वाली भारतीय जनता पार्टी के सामने पूरी की पूरी कांग्रेस पार्टी मैदान में है।

एक राज्य के मुख्यमंत्री से मुकाबला करने के लिए सोनिया गांधी की पूरी सेना के अलावा केन्द्रीय मंत्रिमंडल में उनके सुर में सुर मिलाने वाले कई कथित सेक्युलरवादी नेताओं की टीम से लैस कांग्रेस इस बार गुजरात चुनाव में भाग्य आजमाएगी। गुजरात में सत्ता पाने से लंबे समय से दूर रहे प्रदेश कांग्रेस के कार्यकर्ताओं की छटपटाहट तो समझ में आती है, लेकिन सोनिया गांधी का मामला दूसरा है। राज्य की सत्ता हासिल कर सिर्फ कांग्रेस शासित राज्यों की संख्या में इजाफा करने तक का ही सीमित उद्देश्य उनका नहीं है। नरेन्द्र मोदी यदि फिर से गुजरात में चुनाव जीत जाते हैं तो सर्वप्रथम देश भर में एक नई बहस के जन्म लेने की संभावना उनकी इस सबसे बडी चिंता का कारण है। मोदी के चुनाव जीतने पर एक नई बहस जमीन पर आ सकती है वह है-आजादी के बाद से लेकर अभी तक के विकास के कांग्रेसी फार्मूले की।

गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी यदि आज अपने घर और बाहर दोनों ही जगह असंतुष्टों और विरोधियों से घिरे हुए हैं तो इसका कारण भी उनका विकास का यह नया फार्मूला ही माना जा सकता हैं। माना जाता है मोदी ने गुजरात में राजनीति नहीं की, विकास किया है। इनके विकास के फार्मूले में सर्वप्रथम सब्सिडी और राहत के नाम पर पैसों की बंदरबांट को ही समाप्त करने की दिशा में महत्वपूर्ण काम किया गया है। आज तक लोगों को जो सरकार के विभिन्न योजनाओं के जरिये मदद करने की कोशिश की जाती थी, उसका कागजी कार्रवाई कर अधिकांश राशि सरकारी अधिकारी या तंत्र में ताकतवर लोग निगल लेते थे। स्वर्गीय राजीव गांधी का यह बयान भी इस संदर्भ में महत्वपूर्ण है कि विकास का पैसा गांव तक आते-आते 15 फीसदी तक सिमट कर रह जाता है। नरेन्द्र मोदी ने इस अवधारणा को तोड कर लोगों को या जरूरतमंदों को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में प्रयास कर अनोखा कदम उठाया। इससे तंत्र की सालों से चली आ रही अवैध कमाई पर विराम लग गया।

बडी-बडी योजनाएं, जो कि सालों से अधर में लटकी हुई थी, उसे उन्होंने ताबडतोड निपटा कर उसका लाभ आम जनता को दिलाने में अपनी इच्छा शक्ति का परिचय दिया। विकास के नये आयाम में उन्होंने राज्य की कृषि और उद्योगों के विकास में अद्भुत तारतम्यता लाकर न, तो पश्चिम बंगाल जैसा सेज के नाम पर बवंडर खडा होने दिया और न ही अत्यधिक उद्योगिकरण से लोगों का जीना-मुहाल किया। बल्कि उद्योग और कृषि दोनों क्षेत्र को एक समान विकास के पायदान पर चढा राज्य को विश्व स्तर की प्रतियोगिता के लिए अनुकूल बना दिया।

दंगों के बाद अशांत वातारण में जब श्री मोदी ने सत्ता संभाली तब से लेकर एक साल से अधिक समय तक दंगे की कहानियों को उनके विरोधी ढोल-नगाडे लेकर पीटते रहे। इस कठिन समय से राज्य की जनता को उबारना आसान नहीं था। इसी समय उन्होंने वाइव्रेंट गुजरात का अभियान चला कर राज्य में पूंजी निवेश का दुष्कर अभियान चला दिया। अशांत और खून-खराबे के माहौल के तुरंत बाद इस तरह का खतरा लेकर उन्होंने राज्य की जनता को अपना इरादा जता दिया। फिर इसके बाद उन्होंने पीछे मुड कर नहीं देखा। कई बडे-बडे महोत्सवों के जरिये उन्होंने राज्य में विकास की नई इबारत लिखने की अपनी इच्छा शक्ति और संकल्प को बार-बार प्रमाणित कर दिखाया।

अब जबकि राज्य पांच साल बाद चुनावी दहलीज पर खडा है तो श्री मोदी का एक अहम चुनावी मुद्दा विकास से संबंधित होना अवश्यमभावी है। राज्य की जनता पांच साल तक चैन और सुकून के साथ जीवन यापन कर सकी इसका श्रेय भी राज्य के मुखिया होने के नाते नरेन्द्र मोदी को ही जायेगा। सो यह तय है कि कांग्रेस विकास संबंधी नरेन्द्र मोदी के फार्मूले को चुनावी बहस का मुद्दा बनाने की बजाय वह उन्हीं मुद्दों को उठाना चाहेगी, जिसमें जनता के सवालों से उसे जुझना नहीं पडे।