विजय ही विजय है

सोमवार, 29 अक्तूबर 2007

आर्थिक प्रगति में गुजरात ने कैसे लगायी लम्बी छलांग

लेखक- दीनानाथ मिश्र

हाल ही में भारतीय रिजर्व बैंक ने एक अध्ययन किया है जिसका निष्कर्ष यह है कि 2007 के दौरान सीधे विदेशी निवेश के जरिए भारत को कुल 69 अरब डॉलर पूंजी मिलेगी। यह आंकड़ा करीब 380 लाख करोड़ रुपए के बराबर है। उसमें से 25.8 प्रतिशत विदेशी पूंजी निवेश अकेले गुजरात राज्य में आया। यानि एक चौथाई से ज्यादा। इससे कम, घटते हुए क्रम में, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और तमिलनाडु में विदेशी पूंजी निवेश हुआ। बाकी राज्यों में तो और भी कम। गुजरात में भारत के पांच प्रतिशत लोग हैं और 6 प्रतिशत भूमि इसका क्षेत्रफल है। गुजरात का निर्यात देश का 12 प्रतिशत है। भारत के शेयर बाजार में इस राज्य की भागीदारी 30 प्रतिशत है। गुजरात में गरीबी रेखा के नीचे की आबादी लगभग 15 प्रतिशत है। करीब 40 प्रतिशत लोग शहरों में रहते हैं।

''सेंटर फॉर मॉनीटरिंग इंडियन इकोनॉमी'' के अनुसार आद्योगीकरण के क्षेत्र में गुजरात अन्य राज्यों से कहीं आगे प्रथम स्थान पर है। सोनिया गांधी की अध्यक्षता वाले राजीव गांधी फाउंडेशन ने अपने अध्ययन में यह निष्कर्ष निकाला था कि गुजरात में सर्वाधिक आर्थिक स्वतंत्रता है। गुजरात की शिक्षा दर 70 प्रतिशत से ज्यादा है। 2003, 2005 और 2007 में मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 'वाइबंरेट गुजरात' महासम्मेलन का आयोजन किया था। विश्व भर से उद्योगपति और निवेशक वहां आए। रतन टाटा, मुकेश अंबानी और कुमार मंगलम बिड़ला जैसे उद्योगपतियों ने गुजरात की आर्थिक गतिविधियों और चौमुखी विकास की जबरदस्त सराहना की। विशेष आर्थिक क्षेत्रों के मामले में भी गुजरात देश में प्रथम स्थान पर है। गुजरात में इस समय 51 से अधिक एसईजेड (विशेष आर्थिक क्षेत्र) कार्य कर रहे हैं। आर्थिक क्षेत्र के मामले में महाराष्ट्र को गुजरात ने पीछे छोड़ दिया है। गुजरात के लगभग 19000 गांवों में तीन फेज बिजली की आपूर्ति 24 घंटे होती है। इंग्लैण्ड में रहने वाले कपैरो ग्रुप के लॉर्ड स्वराज पाल ने कहा है कि मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राज्य में उच्च कोटि का बुनियादी ढांचा खड़ा किया है। गुजरात में उत्कृष्ट सड़कें हैं।

गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने चीन यात्रा के दौरान यह दावा किया था कि गुजरात विशेष आर्थिक क्षेत्र के मामले में भारत की राजधानी है। एक अन्य वक्तव्य में उन्होंने दावा किया कि पूरा गुजरात ही विशेष आर्थिक क्षेत्र है। सरदार सरोवर बांध बन जाने के बाद नर्मदा नदीं गुजरात की जीवन रेखा बन गई है। गुजरात में अब पानी का संकट नहीं है। वनवासियों को भी दूर गांव से पानी लाने की जरूरत नहीं है। उच्च शिक्षा और कम्प्यूटरीकरण के मामले में गुजरात तीव्रतर विकास करने वाला राज्य है। ई-गवर्नेन्स से अर्थात कम्प्यूटर के जरिए प्रशासन संभालने का सफल प्रयोग गुजरात में हुआ है। नतीजा यह है कि पिछड़े से पिछड़े गांव के गरीब से गरीब परिवार के खतरनाक बीमारियों से जूझ रहे रोगियों को सर्वोत्तम स्वास्थ्य सेवाओं से जोड़ दिया गया है। आवश्यकता होने पर वह श्रेष्ठतम चुनिन्दा अस्पतालों में इलाज करवा सकते हैं। गर्ववती महिलाओं की स्वास्थ्य सेवाओं का विशेष ध्यान रखा गया है।

'इण्डिया टुडे' ने पिछले पांच वर्षों में गुजरात को दो बार सर्वोत्तम शासन मुहैया कराने वाला राज्य कहा है। भाजपा और नरेन्द्र मोदी के कट्टर से कट्टर विरोधी भी विकास के सवाल पर नरेन्द्र मोदी का लोहा मानते हैं। भले ही कुछ अन्य मुद्दों पर उनका विरोध भी करते हों। गुजरात में इस दिसम्बर के मध्य में विधानसभाई चुनाव होने वाले हैं। प्रशासन में शुचिता और मुख्यमंत्री की व्यक्तिगत ईमानदारी के सवाल पर प्राय: उनका लोहा माना जाता है। प्रसिध्द अन्तर्राष्ट्रीय कंसलटेंसी कम्पनी 'अर्नस्ट एण्ड यंग' ने अपने विशद अध्ययन पर एक रिपोर्ट प्रस्तुत की है। उसमें गुजरात को भारत की विकास यात्रा और आत्म निर्भरता के मामले में एक सुनहरा उदाहरण बताया है। कहा है कि गुजरात सरकार ने 72 अभिनव पहल किए हैं और उन प्रायोगों की उपलब्धियों का व्योरा दिया है। यह ऐसे प्रयोग हैं जिसमें घिसे पिटे और पुराने लकीर के फकीर की विकास रेखाओं पर नहीं चले हैं, नई रेखाएं बनाई हैं।

यह नहीं कि नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व ने केवल उद्योग जगत की महाशक्तियों, बड़े बड़े व्यक्तित्वों को प्रभावित किया हो बल्कि वनवासी, किसान, महिलाओ, स्वरोजगार करने वाले युवाओं मध्यम वर्ग और निम्न वर्ग से भी सराहना हासिल कर रहे हैं। व्यापार और उद्योग जगत की दोनों प्रमुख संस्थाओं सीआईआई और फिक्की ने गुजरात का विशेष अध्ययन कराया है। और उनका भी वही निषकर्ष है जो आम धारणा है। गुजरात को लोग भारत की पेट्रो राजधानी भी कहते हैं। पिछले पांच वर्षों की गुजरात की विकास कथा दो-ढाई सौ शब्दों में नहीं कही जा सकती। कुछ सांकेतिक बातें यहां पर कही गई हैं।

मैं पिछले दिनो सूरत गया था। वहां मैं सूरत के विशेष आर्थिक क्षेत्र में भी गया। यह आधे मील लम्बे-चौड़े से भी बड़ा क्षेत्र है। इसमें कई सौ इकाइयां हैं। हजारों मजदूर काम करते देखे जा सकते हैं। निर्यात के लिए लदते हुए लम्बे चौड़े कंटेनर्स को भी देखा। क्या मतलब है इस विशाल उद्योग समूह का? इसका अर्थ है साढ़े पांच हजार करोड़ रूपए का इस वर्ष का निर्यात। इसका अर्थ है हजारों परिवारों की रोजी रोटी। इसका अर्थ है औद्योगिक विकास। इसका अर्थ है उद्यमिता को अवसर। इसके संचालक हैं एसएन शर्मा। शर्मा उस बिहार के जन्मे पढ़े उद्यमी हैं जिस राज्य को कहा जाता है कि राज्य में उद्यमी प्रतिभाएं नहीं हैं। गुजरात में उद्योगों और व्यवसाय को फलने फूलने के बड़े असवर उपलब्ध हैं। पूंजी उपलब्ध है। प्रतिभाशाली शिक्षित और प्रशिक्षित लोग उपलब्ध हैं। बुनियादी ढांचा है, सड़के हैं, हवाई अड्डे हैं। पैसेंजर सेवा के 9 हवाई अड्डे नियमित रूप से कार्य करते हैं। ऐसा किसी अन्य राज्य में नहीं है। छोटे मोटे अनेक बंदरगाह हैं। बंदरगाहों को जोड़ने वाली रेलवे लाइनें हैं। बिजली है, पानी है। यानि औद्योगीकरण के लिए जो कुछ चाहिए वह सब है। और इनके विकास का बहुत बड़ा हिस्सा पूरा किया है अपने छह वर्षों के शासन काल में मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी की गतिशील और दूरदृष्टि नेतृत्व ने।

आगामी चुनाव में जाहिर है मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच में होगा। 2002 के चुनाव गोधरा तथा उसके कारण घटित दंगों की पृष्ठभूमि में हुए थे। मीडिया और विरोधियों ने दंगों का पूरा दोष नरेन्द्र मोदी पर मढ़ दिया। मोदी देश और दुनिया में तब के सबसे बदनाम मुख्यमंत्री थे। लेकिन राज्य में नहीं। तमाम विरोधी अभियानों, गैर-राजनीतिक संगठनों की फौज के दुशप्रचारों और इसमें बढ़-चढ़ कर अतिरंजित प्रोपेगंडा करने वाले मीडिया समूहों के दानवीकरण के बावजूद नरेन्द्र मोदी दो-तिहाई बहुमत से जीत कर आए थे। लेकिन मोदी वैसे हैं ही नहीं, जैसे उन्हें चित्रित किया गया था। वह पूरे गुजरात को सामने रखकर चलते रहे। वह छह करोड़ गुजरात वासियों को विकास के पथ पर लेकर चले। प्रशासन और विकास यात्रा में उन्होंने गुजरात को ध्यान में रखा, हिन्दुआें और मुसलमानों को नहीं। और आज देखिए गुजरात कहां पहुंच गया है। ऐसी स्थिति में कांग्रेस 2002 के मुकाबले हतबल है। 2002 में कांग्रेस ने शंकर सिंह वाघेला के नेतृत्व में चुनाव लड़ा था। इस बार किसी को नेता पेश कर चुनाव लड़ने की स्थिति में कांग्रेस नहीं है।

वैसे प्रचार की आंधी नरेन्द्र मोदी के खिलाफ आज भी है। पिछले दिनों नरेन्द्र मोदी को प्रसिध्द भेंटवार्ताकार करन थापर ने अपने साप्ताहिक कार्यक्रम में बुलाया। उनकी कोशिश यही थी कि घूम-फिर कर गुजरात दंगों के लिए बदनाम किए गए नरेन्द्र मोदी को इस पुरानी जमीन पर खड़ा कर दिया जाए। मोदी उनके सवालों के जवाब, बिना राजनीतिक मात खाए हुए, टालू मुद्रा में दिया। मगर करन थापर भी कुछ कम नहीं थे। वह छवि के सवाल पर घूम-फिर कर गुजरात के दंगों पर आ जाते थे। अंतत: यह हुआ कि सिर्फ चार मिनट बाद ही नरेन्द्र मोदी ने एक गिलास पानी पिया और भेंटवार्ता का बहिर्गमन कर दिया।

केन्द्रीय गृह राज्यमंत्री ने गुजरात के दंगों में मरने वालों के मजहबी आंकड़े दिए हैं। उन आंकड़ों का मतलब यह है कि वह एकतरफा नहीं थे, दोतरफा थे। बड़ी संख्या में मुसलमान मारे गए लेकिन एक चौथाई संख्या में हिन्दू भी मारे गए। इसमें अगर गोधरा काण्ड के नम्बरों को जोड़ दिया जाए तो मरने वाले हिन्दुओं की संख्या मुसलमानों की संख्या की एक तिहाई से ज्यादा हो जाएगी। बहुत से मुसलमान उजाड़ दिए गए लेकिन हिन्दुओं की भी अच्छी खासी संख्या उजाड़ दी गई। गुजरात में और विशेष रूप से अहमदाबाद में दंगों का लम्बा इतिहास रहा है। कांग्रेस शासन में माधव सिंह सोलंकी के मुख्यमंत्री काल में 1969 में 2002 के मुकाबले कहीं बड़ा दंगा हुआ था। कहीं लम्बा चला था। उसमें हताहतों की संख्या कहीं अधिक थी। यह श्रेय नरेन्द्र मोदी को जाता है कि उन्होंने एक हफ्ते में ही दंगों पर काबू पा लिया। पुलिस की गोलीबारी से करीब सौ लोग मारे गए। हिन्दू भी मारे गए और मुसलमान भी। अहमदाबाद दंगा 1969 वाले दंगों की तरह था। वह नियोजित तो बिलकुल नहीं था। जबकि 1984 में नियोजित ढंग से कांग्रेस ने सिक्खों के खिलाफ दंगे कराए थे। इसकी पुष्टि अनेक सरकारी जांच रिपोर्टों में की गई है। लेकिन पांच साल बाद के इस चुनाव को भी गुजरात के दंगों के नाम पर लड़ने की कोशिश नरेन्द्र मोदी के विरोधियों की है और इसीलिए प्रचारतंत्र में नरेन्द्र मोदी की बहुप्रचारित दानव छवि को फिर से जीवित करने की कोशिश होती रही है।

लेकिन नरेन्द्र मोदी ने तो विकास का रिकॉर्ड बनाया है। उससे हिन्दुओं और मुसलमानों का पूरा समाज आगे बढ़ा है। विरोधियों की रणनीति भले ही अखबारों में कहीं झलक जाए मतपेटियों के हरगिज नहीं झलकेगी। आज तो नरेन्द्र मोदी तमाम विरोधियों की कोशिशों के बावजूद विकास पुरुष ही हैं। नरेन्द्र मोदी के प्रचार अभियान के केन्द्र में विकास है। विरोधी लोग चुनाव को नरेन्द्र मोदी के पक्ष और विपक्ष में जनमत संग्रह के रूप में कराना चाहते हैं। इससे कोई फर्क पड़ने वाला नहीं। चुनाव आयोग निष्पक्ष और स्वतंत्र चुनाव कराने के नाम पर नरेन्द्र मोदी पर अपने निर्णयों से जैसा दबाव बनाया है, वैसा दबाव हिमाचल, जहां करीब-करीब साथ ही चुनाव होने हैं, सरकार पर नहीं बनाया है। भाजपा और संघ परिवार के भीतर उनका जो विरोध है, उसका श्रेय भी नरेन्द्र मोदी को ही है। वह पार्टी के साथियों को साथ लेकर नहीं चलते। क्या आज का राजनीतिक महौल ऐसा है, जिसमें बिना व्यापक हितों से समझौता करके कोई मुख्यमंत्री शासन कर सकता है? संभव है ऐसी स्थिति हो। नरेन्द्र मोदी समझौतावादी नहीं हैं। अपने निर्णयों पर अडिग रहने की उनकी आदत है। वह तब भी ऐसे ही थे जब मुख्यमंत्री नहीं थे। अपनी बात से पलटते नहीं थे। जब संगठन कार्य में लगे थे तब भी मोदी वैसे ही थे। यही उनकी सफलता का राज है।

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