विजय ही विजय है

सोमवार, 17 दिसंबर 2007

हिमाचल में कांग्रेस की बढ़ती दिक्कतें

लेखक- डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री

ऐसे संकेत तो पहले ही मिलने शुरू हो गए थे कि कांग्रेस हाई कमाण्ड वीरभद्र सिंह को हराने की कोशिश कर रहा है। पर मामला इतना आगे बढ़ जाएगा, ऐसी किसी ने आशा नहीं की थी। हाई कमाण्ड ने तीन बार विधायक बनने वाले हिमाचल विधानसभा के उपाध्यक्ष का टिकट काटकर उसकी जगह सोनिया गांधी के रसोईये के बेटे को टिकट दे दिया। वीरभद्र सिंह पूरा जोर लगाने के बावजूद अपने उपाध्यक्ष का टिकट बचा नहीं पाए। लेकिन हाई कमाण्ड की मंशा शायद इतने से ही पूरी नहीं हुईं उसने यह भी घोषणा कर दी कि कांग्रेस के जीतने पर हिमाचल का मुख्यमंत्री कौन बनेगा? अभी ऐसा तय नहीं हुआ है। संकेत स्पष्ट है कि जीतने की स्थिति में वीरभद्र सिंह ही अगले मुख्यमंत्री होंगे ऐसा निश्चित न माना जाए। यह संदेश कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को भी है और प्रदेश की जनता को भी इसका जो दुष्परिणाम होना था वह हो रहा हैं। पहले से ही धड़ों में बटी कांग्रेस में अराजकता की स्थिति पैदा हो गई है। यहाँ तक कि वीरभद्र सिंह के हनुमान कहे जाने वाले मनजीत डोगरा को भी। नादौनता विधानसभा क्षेत्र से टिकट नहीं मिला। डोगरा ने विद्रोह कर दियाऔर अपनी पत्नी को आजाद प्रत्याशी के तौर पर मैदान में उतार दिया। ऐसे विद्रोह एक नहीं अनेक स्थानों पर हुए। लेकिन वीरभद्र सिंह चाहकर भी विद्रोह को रोक नहीं पा रहे क्योंकि कांग्रेस ने पहले ही उनकी शक्ति छीन ली है। वे भविष्य के मुख्यमंत्री नहीं होंगे- इससे उभरे शून्य में जी.एस. बाली जैसे लोग भी मुख्यमंत्री बनने का सपना देखने लगे हैं। विद्या स्टोक्स काफी लंबे अरसे से मुख्यमंत्री बनने का सपना पाल रही हैं। अराजकता की इस स्थिति में कांग्रेस के भीतर भी धुंध है और बाहर भी। कभी वीरभद्र का सिक्का हिमाचल कांग्रेस में चलता था। लेकिन अब उनके अपने ही लोग उनसे किनारा कशी करने लगे हैं। क्योंकि हाईकमाण्ड के संकेत वीरभद्र के विपरीत जा रहे हैं।

पुराने हिमाचल में कभी कांग्रेस की तूती बोलती थी और बाद में वहां कांग्रेस का पर्याय वीरभद्र सिंह ही बन गए। लेकिन बदले हालात में लगता है कि पुराने हिमाचल में भी वीरभद्र सिंह की जड़ें हिलनी शुरू हो गई हैं। किसी स्थान पर उन्हें स्वयं ही अपने परंपरागत समर्थकों पर विश्वास नहीं रहा। दूसरे स्थानों पर उनके समर्थकों का उनमें विश्वास हिलता नजर आ रहा है। रामपुर के विधायक सिंगी राम जो वीरभद्र के परिवार के सदस्य ही माने जाते थे, उनको राजा ने स्वयं त्याग दिया है और टिकट न मिलने पर चौपाल के राजा जोगेन्द्र चंद्र विद्रोह पर उतर आए हैं। वहां भाजपा के डा. राधारमन शास्त्री मजबूत स्थिति में दिखाई दे रहे हैं। सिरमौर और शिमला जिले में कुछ कांग्रेस का भीतरी विद्रोह और कुछ भाजपा की अतिरिक्त सक्रियता दोनों ने मिलकर वीरभद्र की नींद हराम कर दी है।

रही सही कसर विजय सिंह मनकोटिया पूरी कर रहे हैं। मनकोटिया सेना में रह चुके हैं। धुंआधार भाषण देते हैं, कविता लिखते हैं, लेकिन सबसे बढ़कर इस बार मायावती के हाथी की सवारी कर रहे हैं। वीरभद्र सिंह के लिए चिडिया घर में बंधे हाथी से डरने का तो कोई कारण नहीं है लेकिन चुनाव के मैदान में मायावती के हाथी पर चढ़े विजय सिंह मनकोटिया भय पैदा करने के लिए पर्याप्त हैं। यदि बीएसपी ने अनुसूचित जातियों के एक दो प्रतिशत वोट भी काट दिए तो कांग्रेस की लुटिया डुबोने के लिए वे पर्याप्त होंगे। जिस प्रकार कभी पंडित सुखराम वीरभद्र सिंह के पीछे हाथ धोकर पड़ गए थे और उन्हें मुख्यमंत्री की गद्दी तक पहुँचने से रोक ही नहीं लिया था बल्कि वहां से खींचकर उतार भी दिया था। वही काम इस बार मनकोटिया कर रहे हैं। ऊपर से कोढ ने खाज़ यह कि भाजपा हाई कमाण्ड ने प्रेम कुमार धूमल को मुख्यमंत्री का प्रत्याशी घोषित करके रही-सही कसर भी पूरी कर दी है। इससे जहां भाजपा के कार्यकर्ताओं में उत्साह आया है वहीं कांग्रेस के हाथ से एक बहुत बड़ा चुनावी मुद्दा छिन गया है। चुनाव के परिणाम क्या होंगे? यह तो भविष्य ही तय करेगा। लेकिन कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी बज रही है। यह हिमाचल में स्पष्ट सुना जा सकता है।
(नवोत्थान लेख सेवा हिन्दुस्थान समाचार)

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